बन्दर बाबू सबके घर में ,
बिन पूछे घुस जाते हैं |
जो भी देखें पड़ा सामने ,
ले चम्पत हो जाते हैं |
एक दिवस चाचा जी की ,
पिस्तौल टँगी थी खूँटी पर |
चुपके से पिस्तौल उठाकर ,
ले भागे छत के ऊपर |
बन्दर बाबू खेल रहे थे ,
उसे खिलौना समझे थे |
इधर घुमाते ,उधर घुमाते ,
उसमे ही वह उलझे थे |
तभी अचानक गोली चल गयी ,
धांय- धांय करके आवाज |
भला ,निशाना चूक गया ,
नहिं,बन्दर बाबू मरते आज |
आप का ह्र्दय से बहुत बहुत आभार ! इसी तरह समय समय पर हौसला अफज़ाई करते रहें ! धन्यवाद !
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...
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