Wednesday, May 12, 2010

तरबूजा

बाहर हरा  - भीतर लाल  , 
हलुआ मुझमें होता है  | 
लोहा होता मेरे अंदर  ,
भरा विटामिन होता है  | 
ठंडे - मीठे शरबत से  मैं  , 
गर्मी  सबकी दूर भगाऊँ  | 
बच्चे - बूढ़े  मुझे चाहते  , 
मैं तरबूजा कहलाऊँ  | 

4 comments:

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  2. सुंदर अभिव्‍यक्ति, आपका प्रोफाईल पढ़ा, आश्‍चर्य हुआ आप अंग्रेजी माध्‍यम में गणित के शिक्षक है उसके बावजूद हिन्‍दी में स्‍तरीय कविताओं की सर्जना कर लेते हैं। बधाई, हिन्‍दी को ऐसे ही साहित्‍यसेवकों की आवश्‍यकता हैं।
    मेरे ब्‍लॉग पर पधारने का आभार।

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  3. काबिलेतारिफ है आपकी रूचि और आपका सृजन संसार। बधाई स्‍वीकारें ।

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