Sunday, June 20, 2010

मुन्नी बेचारी पछताई

मम्मी जी ने दूध बनाया  
ताजा एक -  गिलास  |
मुन्नी जल्दी पी लो इसको 
रक्खा तेरे  - पास   |
मुन्नी जाकर लगी खेलने 
दूध की याद नहीं आई  |
बिल्ली आयी दूध पी गयी 
मुन्नी बेचारी- पछताई | 

6 comments:

  1. बहोत खूब लिखा है.....
    इस तरह अगर हुआ तो मेरी चिन्मयी बहोत खुश हो जायेगी बिलकुल नहीं पछताएगी और मौसिजिसे दोस्ती कर लेगी :-)

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  2. कोई बात नहीं, मौसी ही तो है! हा हा हा..... पर लगती खूंखार है!
    आदेश बाबू, जब बच्चे होंगे तो उन्हें लेकर आऊंगा.... आपके ब्लॉग पर!
    फिलहाल, एक बैचलर की पीड़ा समझिये.....
    इट्स टफ टू बी ए बैचलर!

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  3. लेकिन इतने गुस्से में क्यों है..?

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  4. एक-एक शब्द भावपूर्ण ...
    संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता.

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